Friday 12 January 2018

मायापुरी की कहानियां : औरत (1940)

मायापुरी की कहानियां

2. औरत (1940)

बैनर : ‘नेशनल स्टूडियोज़ लिमिटेड
निर्माता : चिमनभाई देसाई 
निर्देशक : महबूब खान
कथा : बाबूभाई .मेहता 
संवादवजाहत मिर्ज़ा
संगीत : अनिल बिस्वास
गीत : डॉ.सफ़दरआह
कैमरा : फरदून .ईरानी

औरत!’...एक आम हिन्दुस्तानी औरत के संघर्ष की दास्तान...एक अलग सी कहानी...कसा हुआ स्क्रीनप्ले, आम बोलचाल के दिल में उतर जाने वाले सीधे-सादे डायलाग्स, मीठा गीत-संगीत और मंझे हुए कलाकार...बेहतरीन निर्माण-निर्देशन...नतीजा?...सुपरहिट


सुन्दर चाची (सुनलिनी देवी*) विधवा हैं...साथ ही वो बूढ़ी भी हैं...उनके लिए लाठी लेकर और कमर झुकाकर चलना, गर्दन हिलाते रहना और कांपती हुई आवाज़ में डायलॉग बोलना ज़रूरी है वरना वो बूढ़ी नहीं मानी जाएंगी...स्कूल के नाटकों में हम भी बूढ़े का रोल ऐसे ही करते थे...

सुन्दर चाची अपने इकलौते बेटे शामू (अरूण आहूजा*) की शादी करके बहू राधा (सरदार अख्तर*) को घर लाती हैं...शामू अथाह प्रेम के साथ अपनी नई-नवेली दुल्हन को निहारता है...

सुन्दर चाची ने सूदखोर सुक्खी लाला के पास ज़मीन गिरवी रखकर बेटे की शादी की है... ये बात जब बहू को पता चलती है तो वो गर्दन टेढ़ी करके, विशाल आंखों से करूणारस टपकाती हुई याचना भरे स्वर में कहती है, ‘भगवान, लाज रखना!’...और फिर गाने लगती है, ‘मेरी आशा के जीवन में आयी बहार...बनूं अपने पिया के गले का मैं हार...’

गांव की हट्टीकट्टी कमला (वत्सला कुमठेकर*) से राधा की दांतकाटी दोस्ती है तो कमला का पति बंसी और शामू लंगोटिया यार हैं...दोनों सखियां अपने किसान पतियों के लिए खाना सर पर रखकर गाना गाती गाती हुई रोज़ाना एक साथ खेत जाती हैं...सर पर रखने से खाना गरम रहता है...

खेत में कमला अपने पति बंसी (हरीश*) को बहुत प्रेम से खाना खिलाती है...

गांव की तमाम औरतें सुन्दर चाची के घर में बैठी गाना गा रही हैं – ‘घूंघर वाले हैं बाल, मेरे लला के...!चाची के सूने आंगन में किलकारियां गूंजने वाली हैं...

जल्द ही किलकारियों का शोर दोगुना हो जाता है...

सुक्खी लाला अपने पैसे का तकाज़ा करता है तो 6 साल से उसके पैसे दबाए बैठी सुन्दर चाची उलटा उसी को आंखें दिखाने लगती हैं – ‘अरे तो लाला (तेरा) दम क्यों निकला जाता है?’


उधर किलकारियों के मामले में भगवान बड़ा ही कृपालु महाराज है सो आंगन में तीसरी किलकारी गूंज चुकी है और चौथी बस गूंजने को है...बढ़ती हुई जिम्मेदारियों से परेशानहाल शामू जी बहलाने के लिए नाटक देखने जाता है तो एकाएक उसे ज्ञानबोध की प्राप्ति होती है...

शामू की आंखों के सामने नाटक का हीरो अपनी बीवी को छोड़कर चम्पत हो गया है...

...और उसी रात शामू भी घोड़े बेचकर सोई हुई बीवी के माथे का सिन्दूर पोंछकर हीरोगिरी कर डालता है...

बीवी बेचारी पति की छोड़ी साढ़े तीन निशानियों और पति की अम्मा को संभालने के लिए पीछे छूट जाती है...उसकी नथ अभी तक अपनी जगह टंगी हुई है...उसकी गोद का ये छोटा बच्चा भारत-पाक जहां भी होगा, इस वक़्त 78 साल का होगा...

उधर इकलौते बेटे के लापता होने के ग़म में एक रोज़ सुन्दर चाची की गर्दन ही नहीं बल्कि वो खुद भी पूरी की पूरी हिलनी बंद हो जाती हैं...राधा के सर से एक बला तो टली...जल्द ही एक रोज़ मां से मिलने की जिद कर रहे बच्चों को कमला दरवाज़े से ही टरका देती है...अन्दर कमरे में चौथी किलकारी गूंजने जा रही है...

शादी-ब्याह के मामले में जवानीभर हनुमानभक्त रहे सुक्खी लाला प्रौढ़ावस्था में रंगीले रतन बन गए हैं... इस उम्र में कोई षोडशी तो उन्हें मिलने से रही सो उनकी नज़र राधा पर है...राधा के प्रेम के बदले में वो उसकी गिरवी रखी ज़मीन छोड़ने और रूपए-पैसे से मदद करने को भी तैयार हैं...उस तक अपनी मोहब्बत का पैग़ाम पहुंचाने के लिए वो कमला को पटाने की कोशिश करते हैं... गनीमत है कि सुक्खी से ढाई गुना ज़्यादा वज़नी कमला उसे सिर्फ़ जुबानी वार करके ही बख्श देती है, वरना सुक्खी की रवानगी तय थी... 

उन्हीं दिनों ज़बरदस्त सूखा पड़ता है और पूरा इलाक़ा मंगोलिया का पठार बन जाता है...घास-फूस ग़ायब, असली तो क्या मृगमरीचिका तक का पानी अदृश्य हो चुका है...पशु-पक्षी-ढोर-डंगर भूखप्यास से तड़प-तड़पकर मर रहे हैं और ग़रीब-गुरबे भी, जिनमें राधा के दोनों बड़े बेटे भी शामिल हैं...मां का मन, दोनों छोटे बच्चों की ज़िंदगी बचाने के लिए राधा को मदद की आस में सुक्खी लाला की शरण में जाना ही पड़ता है...वो सुक्खी की बदनीयत से अनजान है... 

राधा को देखते ही सुक्खी लाला का ह्रदय प्रेमरस से खदबदाने लगता है...राधा दीवार पर टंगी लक्ष्मी जी की तस्वीर से अपनी लाज बचाने की गुजारिश करती है...और लक्ष्मी जी तुरंत ही दुर्गा माई और काली माई वाला काम कर देती हैं...

बादल गरजने लगते हैं...बिजली कड़क उठती है...आंधी-तूफ़ान जाता है...और एक सूखा पेड़ उखड़कर दीवार और छत को तोड़ता हुआ सुक्खी लाला के घर के अन्दर गिर पड़ता है...सुक्खी लाला चारों खाने चित...मलबे में दबा हुआ...ऊपर से मोटा पेड़ भी...राधा फ़ौरन बहन हो जाती है...’राधा बहन...राधा बहन मुझे निकालो’...बहना का प्यार, राधा अपने नए-नवेले भैया को मलबे से बाहर निकालकर उसे चपटा होने से बचा लेती है...लक्ष्मी जी ने अगर दुर्गा-काली माईयों की जगह पहले से ही ख़ुद का काम कर दिया होता तो शामू घर से भागता और ये नौबत आती...  

जमकर बारिश हो रही है...गांव वालों की जान में जान आती है और वो झूम उठते हैं – ‘गगरी सूखी बैल प्यासा...पानी दे पानी दे’... कमला को तो गाने का बहाना ही चाहिए, उसकी देखादेखी पतिदेव भी रंग बदलता खरबूजा हो जाते हैं...गवैये गांववालों में वो भी पूरे ज़ोरशोर से शामिल हैं...

समय बीतता गया... राधा, कमला, बंसी बूढ़े और राधा के दोनों बेटे जवान हो गए...छोटे बेटे बिरजू (याक़ूब*) को राधा ने सर पर चढ़ाया हुआ है...वो दिनभर मटरगश्ती, आवारागर्दी और लड़ाई-झगड़ा करता फिरता है...इतनी उम्र हो जाने के बावजूद वो पप्पू ही है...अपनी हरक़तों की वजह से अक्सर वो बंसी की फटकार भी सुनता है...

राधा का बड़ा बेटा रामू (सुरेन्द्रनाथ*) घर में कम, खेत में ज़्यादा पड़ा रहता है...खेत में वो गांव की ही गोरी जमुना (ज्योति*) के साथ नैन-मटक्का करता है, उसके साथ मिल के गाने गाता है – ‘बोल बोल रे बोल, बन के पंछी बोल’...प्रेम सम्बन्धी अथाह व्यस्तताओं के बीच समय मिलने पर वो कभी-कभार खेतीबाड़ी भी कर लेता है...

दोनों बेटों को देख देख राधा का जी नहीं भरता...उसे तसल्ली है कि सारे कर्जे उतर गए हैं, खेतों में फसलें लहलहा रही हैं, घर-बाहर सब तरफ़ खुशहाली है, बस अब उसकी आख़िरी तमन्ना यही है कि घर में दो बहुएं भी जाएं...हालांकि ये सिर्फ़ कहने को ही आख़िरी तमन्ना है...बहुओं के आने के बाद बुढ़िया ज़िद करेगी कि अब पोते का मुंह दिखाओ...

राधा के घर पर गांव की औरतों की महफ़िल जमी हुई है...स्त्रियों के प्रिय परनिंदा-रस का स्वाद लिया जा रहा है...काशीबाई अपनी बेटी जमुना की शादी को लेकर परेशान है...खेत में प्रेमगीत गाते और गुल खिलाते गुल-बुलबुल की हरक़तों का किसी को पता ही नहीं है... उस महफ़िल में राधा के रामू और काशी की जमुना का रिश्ता तय कर दिया जाता है...और जल्द ही दोनों की शादी हो जाती है... राधा की आधी तमन्ना पूरी हुई और प्रेमी जोड़ा अब खेतों का मोहताज नहीं रहा...   

बिरजू ने पूरे गांव की नाक में दम किया हुआ है...वो लोगों के साथ मारपीट करता है, फ़सल का पैसा जुए में लुटा देता है, कमला की बेटी तुलसी से छेड़छाड़ करता है और अपनी भाभी जमुना के गहने चुराकर तुलसी को नज़राने में दे देता है...

ईमानदार तुलसी गहने राधा को लौटा देती है...बिरजू अब भी मां की आंख का तारा है... एक रोज़ मां की आंख का तारा अपने हिस्से की ज़मीन गिरवी रख देता है...जब बड़ा तारा उससे इसकी पूछताछ करता है तो छोटा तारा बड़े तारे के गाल पर ज़बरदस्त तमाचा मारकर उसे भरी दुपहरी चांद-तारे दिखा देता है...बीचबचाव करने आयी मां को वो धक्का देता है और मां चारों खाने चित...और फिर ये तस्वीर...

बिरजू अपने गिरोह के साथ सुक्खी लाला के घर पर धावा बोलता है...सुक्खी तो पैदायशी सूखा हुआ, बिरजू गैंग को देखते ही वो पूरा सूख जाता है...लेकिन मजाल है जो दमड़ी जाने दे, बिरजू के लाख पूछने के बाद भी बता के नहीं देता कि खज़ाना उसने कहां छुपा के रखा है...आगबबूला-लालपीला बिरजू ढीठ सुक्खी का टेंटुआ दबा देता है...

गांव वाले राधा के खिलाफ़ हो गए हैं क्योंकि अब वो एक क़ातिल की मां है...पहले वो सिर्फ़ डाकू की मां थी...बच्चे राधा पर हंसते हैं, लोग उस पर फ़िकरे कसते हैं...एक आदमी उसपर पत्थर फेंकता है...मां की अदाकारी में जान हैपत्थर उसे लगे बिना उसके सर के ऊपर से निकल जाता हैवो अपनी बाईं आंख को हथेली से दबाकर कराहती हुई लुढ़कती है और खून उसके माथे के दायीं तरफ़ से निकलता है...   

कमला की बेटी तुलसी की शादी है...बारात चुकी है...पंडित मन्त्रोच्चार करने में शंख बजाने का सा ज़ोर लगाए हुए हैं...

शादी के मंडप पर बिरजू गैंग का हमला... ’गहने मैं लाकर दूं और शादी किसी और से? अजी हां!’... ज़बरदस्त हंगामा...मारधाड़...लट्ठबाजी...एकाध गोली भी चलती है...बिरजू तुलसी को मंडप से उठाकर भूसे की बोरी की तरह घोड़े पर लादता है...राधा उसे रोकने की कोशिश करती है, ‘बिरजू...बिरजू...कमला की एक ही बच्ची है’...दो चार होतीं तो बात अलग थीकमला के सर से बला ही टलती...राधा घोड़े के साथ साथ दौड़ती चली जाती है... 

बिरजू महाढीठमजाल जो उस पर मां की पुकार का रत्तीभर भी असर हो...घोड़े और राधा की दौड़-प्रतियोगिता में धक्का लगने से राधा लम्बलेट हो जाती है...उधर इस धक्के से राधा की सहूलियत के लिए बिरजू के कंधे पर टंगी बन्दूक भी नीचे टपक पड़ती है...राधा बन्दूक उठाती है...चिल्लाती हैबिरजू...बिरजू’...बिरजू बहरा...राधा ग़ज़ब की निशानेबाज़, एक ही गोली में बिरजू घोड़े पर से टपक पड़ता है...

हृदयपरिवर्तन वाली गोली खाकर वो मां की गोद तक आता है, गोद में पड़ा मुस्कुराता है और दो-चार अच्छे अच्छे डायलॉग बोल के गोद से ही ऊपर रवाना हो जाता है...

अब मां रामू और जमुना की गोद में है...वो एकाध डायलॉग बोलती है...ज़बरदस्त एक्टिंग...और फिर वो भी बिरजू के पीछे-पीछे रवाना हो जाती है...

रामू और जमुना बकरे-बकरी की तरह चिल्लाते रह जाते हैं – ‘मां...मां !’

(सबसे बड़ा सवाल : महबूब अगर बाप का नाम बिरजू और बेटों का रामू-शामू रख देते तो क्या कोई आफत जाती?
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फिल्मऔरतचिमनलाल देसाई के बैनरसागर मूवीटोनके बैनर में बननी शुरू हुई थी...लेकिन उसके पूरा होने तकसागर मूवीटोनऔर यूसुफ़ फज़लभाई कीजनरल फिल्म्स कंपनीमिलकरनेशनल स्टूडियोज़ लिमिटेडमें तब्दील हो चुकी थीं... ’औरतइस नए बैनर की पहली फिल्म थी...इसके बाद महबूब ने इस बैनर की दो और फिल्मेंबहनऔररोटीडायरेक्ट कीं...
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महबूब खान
चलते-चलते : फिल्मऔरतके क्लाईमेक्स के साथ एक बेहद ही दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है...दरअसल राधा का अपने ही बेटे को गोली मार देना किसी के भी गले नहीं उतर रहा था...जो भी स्क्रिप्ट सुनता था वोही कहता था, भले ही बच्चा कितना ही बिगड़ा हुआ क्यों हो, एक मां कभी भी उसका क़त्ल नहीं कर सकती...लोगों को लगता था कि इस क्लाईमेक्स को दर्शक पसंद नहीं करेंगे और फिल्म फ्लॉप हो जाएगी... महबूब क्लाईमेक्स को बदलने को ज़रा भी तैयार नहीं थे लेकिन लोगों की सोच ने उन्हें दुविधा में ज़रूर डाल दिया था...आखिर वो एक रोज़ सेठ चिमनलाल देसाई की पत्नी नंदगौरी से जाकर मिले...नन्दगौरी एक सीधी-सादी हाउसवाइफ थीं और फिल्मों में उनका ज़रा भी दखल नहीं था...महबूब ने नन्दगौरी को फिल्मऔरतकी कहानी सुनाई...लेकिन क्लाईमेक्स को वो छुपा गए...उल्टा उन्होंने नन्दगौरी से ही पूछा, अगर आप राधा की जगह होतीं तो क्या करतीं? नन्दगौरी ने दोटूक जवाब दिया, ‘मैं ऐसी औलाद को गोली मार देती’...उनके इतना कहते ही महबूब दुविधामुक्त हो गए...
(श्री बीरेन कोठारी की पुस्तकसागर मूवीटोनसे साभार...)

महबूब खान के बैनरमहबूब प्रोडक्शन्समें 1957 में बनी फिल्ममदर इंडियाफिल्मऔरतकी ही रीमेक थी...फिल्मऔरतमें राधा और बिरजू के जो रोल सरदार अख्तर और याकूब ने निभाए थे, 17 साल बादमदर इंडियामें वोही रोल नरगिस और सुनील दत्त ने किये...

कन्हैयालाल अकेले ऐसे कलाकार थे जो फिल्मऔरतऔरमदर इंडिया, दोनों में थे...और दोनों में उन्होंने सुक्खी लाला का रोल किया था...
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'वो कौन थे?'
सुनलिनी देवी* एक संभ्रांत चट्टोपाध्याय परिवार से थीं...उन्होंने साइलेंट फिल्मों से करियर शुरू किया था...30 से 50 के दशक के बीच उन्होंने 30 से ज़्यादा फ़िल्में कीं जिनमेंऔरत, ‘महाकवि कालिदास, ‘नौका डूबी, ‘दिलरूबा, ‘मल्हार, ‘नौबहार, ‘ज़लज़लाऔरतमाशाजैसी हिट फ़िल्में शामिल हैं...
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अरूण आहूजा* गुजरांवाला (पाकिस्तान) के रहने वाले थे...उन्होंने महबूब खान की फिल्मएक ही रास्ता(1939) से करियर शुरू किया था...आगे चलकर उन्होंनेऔरत, ‘सवेरा, ‘रिटर्न ऑफ़ तूफ़ान मेल, ‘चालीस करोड़जैसी करीब एक दर्जन फिल्मों में काम किया...50 के दशक में उन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया था...वो मशहूर अभिनेता गोविंदा के पिता थे...
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सरदार अख्तर* लाहौर की रहने वाली थीं और उर्दू नाटकों से फिल्मों में आयी थीं...शुरूआत में उन्होंने कुछ स्टंट फ़िल्में कीं...उन्हें असली पहचान 1939 में बनी फिल्मपुकारसे मिली...सोहराब मोदी की इस फिल्म में उन्होंनेरामी धोबनका रोल किया था...’औरतने उनके करियर को बुलंदियों पर पहुंचाया... 1942 में उन्होंने महबूब खान से शादी कर ली थी...
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वत्सला कुमठेकर*1930 और 40 के दशक की जानी मानी अभिनेत्री और एक मशहूर शास्त्रीय गायिका थीं...उन्होंने आगरा घराने के उस्ताद खादिम हुसैन खान की शागिर्दी में संगीत की तालीम ली थी... 
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हरीश* दिल्ली के एक कायस्थ परिवार में पैदा हुए थे और उनका असली नाम ताराचंद माथुर था...उन्होंने सागर मूवीटोन की फिल्म ‘300 दिन के बाद(1938) से करियर शुरू किया था...50 के दशक में वो ताराहरीश के नाम से निर्देशक बन गए थे...काली टोपी लाल रूमाल, ‘दो उस्ताद, ‘नक़ली नवाबऔरबर्मा रोडजैसी फिल्मों का निर्देशन उन्हीं का था...    
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याक़ूब* जबलपुर के रहने वाले थे और 1920 के दशक में साइलेंट के ज़माने में फिल्मों में आए थे...शुरूआती दौर में उन्होंने कई फिल्मों में निगेटिव रोल्स किये...वो सागर मूवीटोन की फिल्मों के स्टार थे...1940  के दशक में याकूब कॉमेडी रोल्स करने लगे थे...कामेडियन गोप के साथ उनकी जोड़ी बहुत हिट हुई थी...
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सुरेन्द्रनाथ* यानी सुरेन्द्रनाथ शर्मा पंजाब के बटाला के रहने वाले थे और बहुत अच्छा गाते थे...उन्होंने बी..- एल.एल.बी. किया और फिर मुम्बई चले आए जहां उनकी मुलाक़ात महबूब खान से हुई...महबूब खान ने सुरेन्द्रनाथ को 1936 की अपनी फिल्मडेकन क्वीनमें ब्रेक देकर उन्हें मुम्बई में, न्यू थियेटर कोलकाता के सिंगिंग स्टार के.एल.सहगल के पैरेलल खड़ा करने की कोशिश की और काफी हद तक कामयाब भी हुए... सुरेन्द्रनाथ अपने गाने खुद ही गाते रहेनूरजहां  के साथ गाया 1946 कीअनमोल घड़ीकाआवाज़ दे कहां है...’ उनका सबसे बड़ा हिट गाना है...
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ज्योति*1930 और 40 के दशक की जानी मानी अभिनेत्री थीं...वो आगरा के पास फ़तेहाबाद की रहने वाली थीं...उनका असली नाम सितारा था और वो उस दौर की मशहूर अभिनेत्री वहीदन की छोटी बहन थीं...उन्होंने उस ज़माने के मशहूर गायक जी.एम.दुर्रानी से शादी की थी...आगे चलकर वहीदन की बेटी और ज्योति की भांजी निम्मी बहुत बड़ी स्टार बनीं...
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आभार : सर्वश्री बीरेन कोठारी (वडोदरा), हरमंदिर सिंहहमराज़’ (कानपुर), राजनीकुमार पंड्या (अहमदाबाद), हरीश रघुवंशी (सूरत), अरूण कुमार देशमुख (मुम्बई), एस.एम.एम.औसजा (मुम्बई), जय शाह और योगेश सोनावणे (‘शेमारू’ - मुम्बई), संजीव तंवर (दिल्ली)
.................................................................प्रस्तुति : शिशिर कृष्ण शर्मा