परम्पराएं और मान्यताएं :
“जाहरदीवान का बसेरा” !!!
…………………शिशिर कृष्ण शर्मा
(वीडियो संपादन : श्री मनस्वी शर्मा)
शादी के बाद उस नवविवाहित जोड़े ने परंपरानुसार पूरे परिवार के साथ मिलकर पहाड़ की तलहटी में बने अपनी कुलदेवी के मंदिर में पूजा-अर्चना की। परिवार के बाक़ी सदस्य तो पूजा के बाद सीधे घर वापस लौट गए लेकिन नवविवाहित पति-पत्नी घूमने निकल पड़े। फ़रवरी माह की ठंड, हल्की धुंध, साल के घने जंगलों से घिरा सुनसान पहाड़ी रास्ता, हर तरफ़ सन्नाटा, भरी दुपहरी में भी शाम का सा अहसास, कुल मिलाकर माहौल ख़ासा रहस्यपूर्ण और रोमांचक था। और तभी अचानक एक मोड़ पर उन्हें मोटरसाईकिल को झटके से रोक देना पड़ा। सामने जो कुछ नज़र आया उसने उस नवविवाहित जोड़े को दहला कर रख दिया। बामुश्किल छह कदम की दूरी पर सड़क पार करता हुआ एक विशाल काला नाग, पूंछ और सर सड़क के आरपार, शरीर के अगले हिस्से को हवा में क़रीब चार फ़ुट उछालकर उसने किनारे पर बनी पुलिया पर धमाके की सी आवाज़ के साथ पछाड़ खाई और फिर तेज़ी से पुलिया उतरकर वो उस पार के जंगलों में ग़ायब हो गया।

ये सिलसिला तब जाकर थमा जब गांव में कहीं ‘जाहरदीवान का बसेरा’ हुआ और घर के बड़े-बुज़ुर्गों के कहने पर उन पति-पत्नी ने बसेरे में जाकर जाहरदीवान की पूजा की।
आख़िर कौन थे ये जाहरदीवान?
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21 मई 2014...देहरादून के दक्षिण में शिवालिक की पहाड़ियों में राजाजी नेशनल पार्क की सीमा पर साल के घने जंगलों के बीच बसा छोटा सा गांव नवादा !...सुबह के करीब 11 बजे का वक़्त। माहौल में ग़ुलाबी ठंडक...दूर-दूर तक पसरा सन्नाटा। अलसाया सा मैं कम्प्यूटर पर बहुत देर से कुछ लिखने की असफल कोशिशों में जुटा हुआ हूं लेकिन मस्तिष्क और हाथों के बीच तारतम्य बन ही नहीं पा रहा है। एकाएक किसी के गाने और साथ में डमरू की तेज़ आवाज़ ने सन्नाटे के साथ साथ मेरी तन्द्रा को भी भंग कर दिया। बाहर निकला तो आंगन में दो शख़्स गाते-बजाते नज़र आए। परिचय हुआ, वो थे जाहरदीवान के पुजारी रामप्रसाद भगत और प्रदीप भगत। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और पहली बार जाहरदीवान के बारे में तमाम जानकारियां हासिल हुई।
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नागों के देवता जाहरदीवान को मुख्यत: राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड के तराई के इलाक़ों और पंजाब में पूजा जाता है। इनका मूल स्थान राजस्थान के चुरू ज़िले का ददरेवा गांव है और इन्हें जाहरवीर, गोगाजी, गोगाबीर और गोगापीर के नाम से भी जाना जाता है।
(वीडियो संपादन : श्री मनस्वी शर्मा)
कहा जाता है कि जाहरदीवान का जन्म साल 900 के आसपास गुरू गोरखनाथ के आशीर्वाद से राजा जेवर और उसकी नि:संतान पत्नी रानी बाछल की संतान के रूप में ददरेवा गांव में हुआ था। चौहान राजपूत राजा जेवर का राज्य बागड़ देड़गा, राजस्थान के गंगानगर से हरियाणा में हांसी और पंजाब में सतलुज तक फैला हुआ था। संतान पाने के लिए तड़प रहीं रानी बाछल की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके आराध्य गुरू गोरखनाथ ने उन्हें गुग्गुल की जड़ी खाने को दी। रानी ने उस जड़ी के पांच हिस्से किए, एक हिस्सा अपने लिए रखा, तीन हिस्से तीन नि:संतान स्त्रियों को दिए और पांचवा हिस्सा अपने पति की नीले रंग की एक घोड़ी को खिला दिया। जाहरदीवान की सवारी नीला घोड़ा इसी घोड़ी की संतान है।![]() |
जाहरदीवान की छड़ी
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जाहरदीवान की इस कहानी से उनकी मां बाछल की जुड़वां बहन और कहानी की खलनायिका ‘काछल’, उसके दो बेटे ‘अर्जन’ और ‘सर्जन’, जाहरदीवान की पत्नी ‘श्रीयल रोज’ और जाहरदीवान के श्वसुर, तांडुल नगरी के राजा ‘सिंधा सिंह’ जैसे किरदार भी जुड़े हुए हैं।
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माना जाता है कि जाहरदीवान यानि गोगाजी सांपों से अपने भक्तों क़ी रक्षा करते हैं। राजस्थान के हरेक गांव में गोगाजी का मंदिर पाया जाता है, जिसमें गोगाजी के प्रतीक के रूप में मोरपंख, नारियल, रंगबिरंगे धागों और हाथ से झलने वाले पंखों से सजा एक लम्बा बांस मौजूद होता है। ‘गोगाजी की छड़ी’ कहलाने वाले इस बांस के ऊपरी सिरे पर एक नीला झण्डा बंधा होता है। गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा (चुरू) और राजस्थान के हनुमानगढ़ स्थित गोगामढ़ी गांव के उनके समाधिस्थल पर हर साल भाद्रपद महिने के कृष्णपक्ष की नवमी से तीन दिनों के लिए गोगाजी मेला लगता है। उस रोज़ ऐसा ही मेला हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के थनीकपुरा और उत्तरप्रदेश के बिजनौर ज़िले के रेहड़ गांव में भी लगता है। जाहरदीवान अर्थात गोगाबीर की मां रानी बाछल का मायका इसी रेहड़ गांव में था और वो राजा कोरापाल की बेटी थीं।
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प्रदीप भगत और रामप्रसाद भगत |
रात ठीक 12 बजे काली और नृसिंह को शराब का और जाहरदीवान को गंगाजल मिले कच्चे दूध का भोग लगाया जाता है जिसे ‘धार देना’ कहते हैं।
इस पूरी बातचीत के दौरान प्रदीप भगत सर नीचे किए हुए ख़ामोश बैठे रहे। मैंने उनसे बात करने की बहुत कोशिश की लेकिन न तो उन्होंने सर ऊपर उठाया और न ही वो कुछ बोले। ऐसे में रामप्रसाद भगतजी ने एक चौंका देने वाली बात बताई कि प्रदीप भगत की ये हालत काली और नृसिंह के दोष की वजह से है। दरअसल कुछ बरस पहले देहरादून के दूधली गांव में हुए एक बसेरे के दौरान प्रदीप भगत ने काली और नृसिंह को धार देने से पहले ही उनके नाम से लायी गयी शराब चुराकर पी ली थी जिससे उन्हें उसी वक़्त खून की उल्टियां होने लगी थीं। रामप्रसाद भगतजी के अनुसार प्रदीप भगत की जान बहुत मुश्किल से बच पायी थी और तीन बसेरे करने के बाद कहीं जाकर काली और नृसिंह शांत हुए थे। हालांकि प्रदीप भगत आज भी उनके दोष से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाए हैं।
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रानी कर्णवती के शासनकाल में गांव नवादा टिहरी रियासत की सर्दियों की राजधानी हुआ करता था। कुछ सालों पहले तक यहां रानी के महल के अवशेष मौजूद थे जो वक़्त के साथ मिट्टी में मिल गए। बड़े-बुज़ुर्ग बताते हैं कि शिवालिक की जिस पहाड़ी पर गांव नवादा बसा हुआ है उसे ‘नागसिद्ध की पहाड़ी’ कहा जाता है। इस पहाड़ी पर बेशुमार नागों और सांपों का बसेरा है लेकिन आज तक इस गांव में सांप के डंसने का एक भी उदाहरण नहीं मिलता। गांव नवादा, साल 1993 में ‘जमनालाल बजाज पुरस्कार’ से सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी, उत्तर प्रदेश सरकार में क़रीब 17 साल मंत्री रहे कांग्रेसी नेता और उत्तर प्रदेश में गांधी (खादी) आश्रम के संस्थापक (स्वर्गीय) पंडित विचित्र नारायण शर्मा की जन्मस्थली है।
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.....और अंत में, इस आलेख के प्रारंभ में वर्णित नवविवाहित जोड़ा ख़ुद मैं शिशिर कृष्ण शर्मा और मेरी पत्नी अंशु शर्मा हैं जो फ़रवरी 1987 में विवाह के ठीक बाद से लगातार 3 सालों तक उपरोक्त नागदोष से पीड़ित रहे।