“ब्लडी
बिच”
……...शिशिर
कृष्ण शर्मा
‘ओमाग्गॉश...ओमाग्गॉऑश...ओमाग्गॉऑऑऑश
!!!’
अगर
इसके बाद
एक 'ओमाग्गॉश'
और हो
जाता तो
आसपास बैठे
दो-चार
लोग तो
गश खाकर
गिर ही
पड़ते। कुछ
समझ ही
नहीं आया
कि साथ
वाली टेबल
पर अच्छी-भली
बैठी उस
सुन्दरी के
साथ अचानक
ऐसा क्या
घटा जो
वो 'ओमाग्गॉऑऑऑश'
का क्रंदन
करती हुई
स्प्रिंग की
मानिंद उछली
और घंटाघर
की भांति
खड़ी हो
गयी?...कहीं
बोझ से
त्रस्त किसी
नाज़ुक सी
कील ने
'ज़रा
देखूं तो
कौन है
कम्बख़्त'
कहते हुए
‘बोझ’
के दर्शन
हेतु अपना
सर तो
सीट से
बाहर नहीं
निकाल लिया
था?
दिल
को एकबारगी
तो दहला
ही देने
वाली ये
घटना कल
शाम गोरेगांव
(पूर्व)
के ओबेरॉय
मॉल के
फ़ूडकोर्ट में
घटी थी,
जहां हम
तीन-चार
दोस्त इस
महानगर के
चरित्र के
अनुरूप भीड़
के बीच
होकर भी
भीड़ से
बेपरवाह,
चाय की
चुस्कियों के
साथ बातचीत
में मशगूल
थे...लेकिन
एकाएक 'ओमाग्गॉऑऑऑश'
का उद्घोष
फ़ायरब्रिगेड के
सायरन सा
बजा और
देखते ही
देखते वो
कोमलांगी हवाईजहाज़
की तरह
डैने फैलाए
दौड़ पड़ी।
सामने
से भी
एक हवाईजहाज़
चला आ
रहा था।
दोनों
सुंदरियों ने
सूक्ष्म सी
दूरी बनाए
रखते हुए
एक दूसरे
से लिपटने
का अभिनय
किया,
गाल से
गाल सटाए
और फिर
अलग होकर
एक-दूसरे
की आंखों
में झांकने
लगीं। पड़ोसन
के रोम-रोम
से प्रेम,
स्नेह और
अपनत्व के
चश्मे फूटने
लगे थे।
'हाई...हाय्यू?...ओग्गॉऑश,
आफ़्टर सो
लांग?'
कहते हुए
पड़ोसन ने
उस हवाईजहाज़
का डैना
पकड़ा और
उसे घसीटती
हुई अपने
टेबल तक
ले आयी,
जहां डौलेशौलेयुक्त-सिक्सपैकिया,
जिम-निवासी
एक गबरू
जवान बैठा
था। पड़ोसन
ने उस
पहलवान से
नवागंतुका का
परिचय कराया...
‘दिस
इज़
(नाम)...मैं
तुम्हें बता
रही थी
न!...रिमेम्बर?’
‘या
या...हाआआई!’
नवागंतुका
घाघरे जैसी
कोई चीज़
पहने हुए
थी,
लेकिन शायद
जल्दबाज़ी में
ब्लाऊज़ पहनना
भूल गयी
थी...या फिर उसका ब्लाऊज़ ही शायद अंतःवस्त्र के साईज़
का था। हालांकि हालात दूसरी तरफ़ भी कम बदतर
नहीं थे,
नितम्ब अपने
तीन-चौथाई
हिस्से को
ढंकने का
कष्ट उठाए
रखने के
लिए शॉर्ट्स
का शुक्रिया
अदा कर
रहे थे
और जिस
'कान
के बाले'
को ढूंढने
के काम
में 'साजना'
पिछले
55 सालों से
जुटे हुए
हैं,
वो यहां
नाभी पर
टंगा नज़र
आ रहा
था।
‘सो?
हाऊ यू
डुईंग?’
– पड़ोसन ने
पूछा।
‘बस,
ऑडिशंस...एन
शूट्स...’
– नवागंतुका कुछ
अनमनी सी
थी।
‘प्लीज़
सिट सिट...’
– पहलवान ने
आग्रह किया।
‘नो
थैंक्स...हैव
एन अर्जेंट
मीटिंग,
एम ऑलरेडी
लेट,
यु नो?’
नवागुंतका
की निगाहें
फ़ूडकोर्ट में
मौजूद भक्षकों
की भीड़
में किसी
को तलाशने
लगीं...
‘अखेएएएय...!’
– पहलवान ने
कहा।
‘प्लीज़
कैरी ऑन...आय
जस्ट लोकेट
हिम...बाआआई...’
- डेढ़ पसली
की उस
नवागुंतका ने
अपनी पसलियों
की निचली
सीमा तक
दायां हाथ
उठाकर नज़ाक़त
से तर्जनी
और मध्यमा
हिलाईं...
‘बाआआई’...टेक
कैयअअअ’...!’
– पड़ोसन उसकी
सुरक्षा को
लेकर काफ़ी
चिंतित नज़र
आयी। उसके
स्वर में
बिछोह का
सैलाब उमड़
पड़ा था।
तमाम अदाएं
बिखेरती नवागंतुका
ने गीयर
लगाया और
तीव्र गति
से भीड़
में अंतर्ध्यान
हो गयी...’बाआआई’
कहने के
लिए खुला
पहलवान का
मुंह खुला
ही रह
गया।
‘बिच!’
पड़ोसन के
स्वर में
हिकारत थी।
’व्हॉट?’
– पहलवान चौंका।
‘अरे
यही तो
है वो...ब्लडी
@#$%&!...मैंने
बताया था
न तुम्हें?'
'क्या
बताया था?'
‘उस
दिन के
बाद आज
दिखी ये
!...देखा कैसी
भागी यहां
से?
मन तो
हुआ,
झोंटा पकड़
लूं इसका...फिर
सोचा,
जाने दो
यार,
इतने साल
हो गए,
यु नो!‘
पहलवान
का मुंह
और हमारे
कान और
भी ज़्यादा
खुल गए
थे। सच
जानने की
उत्सुकताएं और
रहस्यों के
प्रति जिज्ञासाएं
तो मानव
की प्रकृति
में ही
हैं।
‘याद
है न
तुम्हें?
तीन-चार
साल पहले
मेरा जो
विग चोरी
हुआ था?
शूट के
आख़िरी दिन?
यही थी
वो चोरनी!...बिल्कुल
नया विग
था मेरा...एट
थाऊज़ेण्ड का...’
– पड़ोसन का
दर्देदिल चेहरे
पर छलकने
लगा था।
...और
तभी कान
पर मोबाईल
लगाए नवागंतुका
फिर से
हमारी टेबल
के पास
से गुज़री,
वो शायद
फ़ूडकोर्ट की
भीड़ में
खोए अपने
साथी तक
पहुंचने की
कोशिश में
थी...पड़ोसन
पर नज़र
पड़ते ही
उसने एक
बार फिर मुस्कुराते
हुए तर्जनी
और मध्यमा
हिलाकर ‘बाय’
का उपक्रम
किया...पड़ोसन
ने भी
उसी अदा
से डेढ़
इंची मुस्कान
के साथ
तर्जनी और
मध्यमा लचकाईं
और ज्यों
ही नवागंतुका
की पीठ
उसकी ओर
घूमी,
फिर से
वोही उद्घोष
हुआ –
‘ब्लडी
बिच!’
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(मूलत:
फ़ेसबुक पोस्ट
: दिनांक 12.12.2015)
Bahut badiya bhaisahab aap ka bhi jawab nahi likhne mein proud of you
ReplyDeleteWah...Very good description.... Enjoyed....
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