“वो
कौन
थी?”
……...शिशिर
कृष्ण
शर्मा
मंगलवार,
1 अक्टूबर
2013...पहाड़ी
की तलहटी
में गंगा के किनारे
बसे एक
मझोले
शहर का
रेलवे
स्टेशन...स्टेशन
से थोड़ा
हटकर सुनसान
सी जगह
पर आऊटर
के क़रीब
बना एक
छोटा सा
क्वार्टर, जिसे
'रेलवे
गेस्ट
हाऊस' के
नाम से
जाना जाता
है, लेकिन
जिसका
इस्तेमाल
कभी-कभार
ही होता
है...आज
महिनों
बाद इस
गेस्ट
हाऊस का
ताला खुला
है क्योंकि
यहां एक
नौजवान
को आज
की रात
गुज़ारनी
है।
इस
नौजवान
का बड़ा
भाई फ़ौजी
अधिकारी
है जो
इन दिनों
मध्यप्रदेश
के एक
कैण्ट
में पोस्टेड
है। क़रीब
50-52 किलोमीटर
दूर के
एक बड़े
शहर के
रहने वाले
इस नौजवान
को अलस्सुबह
इस मझोले
शहर से
चलने वाली
ट्रेन
से अपने
भाई के
घर जाना
है, और
इसीलिए
ये एक
रोज़ पहले ही यहां
पहुंच
चुका है।
गेस्ट
हाऊस में
इसके ठहरने
का इंतज़ाम
इसके ही शहर
में,
रेलवे
में कार्यरत
इसके ममेरे
भाई ने
कराया
है।
सर्दियां
दस्तक
दे चुकी
हैं। हवा
में हल्की
ठिठुरन
और कोहरा
है। शहर
अब सोने
की तैयारी
में है।
ये नौजवान
भी क़रीब
9 बजे
गेस्ट
हाऊस में
आता है
और पूरी
एहतियात
के साथ दरवाज़े को अंदर से बन्द करके
सो जाता
है।
..............पहाड़ी
इलाक़ों
में रातें वाकई बहुत
जल्द घिर
आती हैं।
क़रीब
90 किलोमीटर
की ये
एक अलग-थलग
सी सिंगल
रेलवे
लाईन है
जिस पर
रात के वक़्त ट्रेनों
की आवाजाही
नहीं होती
और इसीलिए
रात गहराते ही ये
स्टेशन
सन्नाटे
में डूब
जाता है।
क़रीब
2 बजे का समय...दूर
दूर तक
सन्नाटा...हवा
की सांयसांय...गंगा
की मद्धम
सी कलकल...खिड़की
से आती
झीनी सी
रोशनी...अचानक
नौजवान
की नींद
खुलती
है...वो
देखता
है कि
उसके बिस्तर
पर ठीक
उसके बगल
में, उसकी
तरफ़ पीठ
किए एक
स्त्री
सोई हुई
है जिसके
घने, लम्बे,
बिखरे-बिखरे
से बाल
बिस्तर
पर फैले
हुए हैं...मारे
भय के
उसका ख़ून
सूख जाता
है...वो
दबे पांव
बिस्तर
से उतरता
है और
मेज़ पर
रखा अपना
बैग उठाकर
तेज़ी से
दरवाज़े
की तरफ़
झपटता
है...
और
तभी उसकी
नज़र दरवाज़े
के पास
फ़र्श पर
बैठे 4-5 साल
के एक
बच्चे
पर पड़ती
है...पथराए
चेहरे
और पथराई
आंखों
वाला वो
बच्चा
एकटक उस
नौजवान
को घूर
रहा है...!!!
(ये
किसी रहस्य-रोमांच
से भरे
उपन्यास
या हॉरर
फ़िल्म
का हिस्सा
नहीं है।
ये एक
सच्ची
घटना है
जो क़रीबी रिश्ते के मेरे एक भाई के साथ
घटी थी।
उक्त गेस्ट
हाऊस को
आमतौर
पर बन्द
रखे जाने
की वजह
भी उसमें
घटने वाली
ऐसी रहस्यमय
और भयावह
घटनाएं
ही हैं।)
....................................................................................................................
(मूलत: फ़ेसबुक पोस्ट : दिनांक 09.06.2015)
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