Friday 9 October 2015

"होर सुणाओ"

"होर सुणाओ"

………..शिशिर कृष्ण शर्मा

रविवार की दोपहर एक डेढ़ घण्टे की नींद के बाद की खुमारी...अचानक मोबाईल की घंटी बजी...अधखुली आंखों से नाम पढ़ने की कोशिश करते हुए कॉल ली, स्क्रीन पर कोई अनजाना सा नम्बर था...

नमस्ते जी...मैं हरियाणे से बोल रा जी...मियां फुक्कन...पिछाणा?

जीईईई... ("नहीं" कहना मुझे अच्छा नहीं लगा।)

आपसे दो-ढाई साल पैहले बात हुई थी ? फेर मेरा मोबाईल खो ग्या जी...आज दराज में परची मिली, उसपे आपका नाम लिक्खा देक्खा तो सोच्चा फोन कर लूं...होर सुणाओ !!!!!!

(आंखें खुल नहीं रही हैं, इन्हें क्या 'सुणाऊं'?)

आजकल लिख नी रे जी? सहारा तो बन्द हो ग्या, राजस्थान पत्रिका में बी नी दिखते, दो-चार दफ़े नेशनल दुनिया में नजर आए, अब वहां बी नी दिख रे?

जी वो ब्लॉग है , 'बीते हुए दिन'...बस अब वोही है...

वो तो कम्प्यूटर पे है जी, आप बता रे थे? अब हमें तो आत्ता नी जी कम्प्यूटर...

(मैं चुप)

खर्चा कैसे चलता होगा जी आपका? कम्प्यूटर पे पैसे-वैसे भी मिलैं कुछ?

सारे काम पैसे के लिए ही नहीं किए जाते सर !!!

लेकिन घर बी तो चलणा चहिए...पैहले तो अखबारों में लिख लिख के कमा लेत्ते थे आप...!!!

(चुप्पी)

होर सुणाओ जी !!!

बस सब ठीक है...

भौत अच्छा काम कर रे थे जी आप...पर अब तो अखबार सिरफ़ नई पिक्चरों का छाप्पें...पुराणी पिक्चरों का कहीं कुछ दिखताई नी...

हां, वो तो है...

अखबारों में छपता रहे तो चार पैसे बी आत्ते रहें...

(मन हुआ, फ़ोन फ़िलहाल अपने ही सर पर मार लूं...)

होर सुणाओ !!!

(ख़ामोशी)

दिक्खे कहीं बिजी हैं आप ???

हां थोड़ा सा...

ठीक है जी अब तो नम्बर मिल ग्या...बात्तें होत्ती रहेंगी...अच्छा वो नादिरा जिंदी है क्या?

पता नहीं जी...पता करके बता दूंगा...

अच्छा जी...फेर करता हूं फ़ोन...नमस्ते जी !!!

कल से ""होर सुणाओ"" ही कानों में गूंज रहा है...और मोबाईल की तरफ़ देखते हुए भी दहशत हो रही है...!!!
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(मूलत: फ़ेसबुक पोस्ट : दिनांक 06.04.2015) 

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